29 मार्च, 2010

उंदारियूं का बाटा


वो जुलाई की एक उमस भरी सुबह थी। उस दिन 13 जुलाई को इंटर पास करने के बाद मैं पहली बार सुबह नौ बजे की बस से अपनी जड़ों से बेदखल हुआ था। ये मेरी नियति थी, मेरी ही क्‍या हर पहाड़ी नौजवान की जिसके लिए इंटर पास करने का मतलब अपनी माटी छोड़ने का फरमान आ जाना भी होता है । मुझे अहसास था कि शायद जिंदगी यहां पर एक मुक्‍कमल मोड़ ले रही है । मैं घर के एक एक कोने को गहराई से निहारता हुआ गांव के बडे़ बुजुर्गों के थके हुए लेकिन बेहद आत्‍मीय चेहरों पर नजर डालता हुआ बस स्‍टैंड तक पहुंचा । ठीक नौ बजे जीएमओयू की बस हार्न बजाते हुए सामने के मोड से प्रकट हुई, मैं बस में सवार हो गया, इस तरह मैने अपनी माटी छोड़ दी ।
बस में नेगी दा का गीत बज रहा था ‘ना दौड़ ना दौड़ उंदारियूं का बाटा’। गीत मेरी विदाई की बैकग्राउंड में बज रहा था, इसलिए मुझे रोना आता रहा, मैं खुद को किसी तरह संभालता रहा । मैं अंदर ही अंदर लौट कर आने का संकल्‍प मन में ले रहा था। दोपहर एक बजे मैं ऋषिकेश पहुंचा और यहां से दिल्ली की बस पकड़ ली ।।।।।।।।
.... अब मेरे सामने दिल्‍ली का समर था। यहां उमस थी, लू थी, मारामारी थी, जेबकतरे थे, बेदर्द लोग थे जो फकत ब्‍ल्‍यू लाइन में चढ़ने के लिए आपके ऊपर से होकर गुजरने का हौसला रखते हैं। मेरे लिए यहां हर चीज नई थी, बल्कि अटपटी थी। मन किया सबकुछ छोड़कर वापस भाग जाऊं, मुझे नहीं रहना यहां । लेकिन पीछे मुड़कर देखने का मेरे पास कोई विकल्‍प नहीं था, मैने एडजस्‍ट किया और धीरे धीरे खुद को दिल्ली के अनुकूल पाने लगा। पहाड़ मुझे अब भी प्‍यारे थे, लेकिन ज्‍यादा प्‍यारी नौकरी थी । इस तरह गांव छूटा, पहाड़ भी छूटा, देवदार की सरसर बहती हवा और बांज की जड़ों का ठंडा पानी गटकने की आदत भी जाती रही । मैने यहां देखा कि अपने कई भाई बंद दिल्‍ली के माहौल में सेट होने के लिए कंडवाल की जगह शर्मा, रावत की जगह सिंह बन गए हैं । सब चलता है कि तर्ज पर ।
.......शुरू शुरू में हर चीज छूटने का दर्द सालता रहा, यहां तक कि पड़ोस के गांव के बौड़ा, काका और काकी की याद भी आती रही । जो मेरे नाम के सा‍थ मेरे पूरे परिवार का इतिहास, गौड़ी बाछी के बारे में भी जानकारी रखते थे । गांव के नौनिहाल जो कई बार नंग धंडग होकर एक साथ हाथ पकड़ खेलते रहते वो बरबस यादों में आते । गोकि वो मेरी उम्र से काफी छोटे थे, मैं उनमें खुद के बचपन को झांक कर देखने की कोशिश करता । तिबारी में दबे पांव आने वाली ---‘बिराली’ याद आती, याद आता कि किस तरह गांव का एक मात्र पालतू कुत्‍ता वक्‍त बेवक्‍त भौंकता रहता। सौंण भादों की घनधोर बरसात में पटाल से लगातार गिरती धार भी सालों तक कानों में बजती रही । यादों का अंधड अक्‍सर परदेश के दर्द को बढ़ा जाता। ।।।।।।।
।।।।। मगर यादों को दिमाग में ठूसे रखने की भी एक सीमा होती है । नए सपनों को पूरा करने के लिए भी तो दिमाग में स्‍पेश रखनी है । आखिर इन सपनों को पूरा करन के लिए ही तो पहाड़ से आए हैं । जल्‍द से जल्‍द खुद को नौकरी में जमाना है, यहीं किसी पहाड़ी लड़की को ‘ब्‍यौंलि’ बनाने का सपना भी सच करना है । जिंदगी अतीतजीवी होकर नहीं चलती, पहाड़ देखने में तो अच्‍छे लगते हैं पर इन्‍हें झेलना सचमुच कठिन है । बैकग्राउंड मजबूत न हो पाने के कारण मैं तो बहुत कुछ नहीं कर पाया, लेकिन बच्‍चों को वो सबकुछ देना है जो मुझे नहीं मिला। हां उम्र की आखिरी ढलान पर सारी जिम्‍मेदारी निभाकर अपने गांव में बस जाउंगा । तब ना मुझे कमाने की चिंता होगी, न भविष्‍य की । बस किसी तरह जिस माटी पर जन्‍म लिया वहीं खाक हो जाऊं । ।।।।।।।।
तीस साल बाद
।।।।।।।।।
अब जिंदगी उस मुकाम पर भी पहुंच गई है । जो सपने देखे थे वो आधे अधूरे ढंग से पूरे भी हो चुके हैं । पहाड़ आज भी यादों में सताता है । सच मानो दर्द अब कुछ ज्‍यादा ही बढ़ता जा रहा है। पर कहीं कुछ बदल भी गया है । नयार, हैंवल, रवासन, भागीरथी, गंगाजी में अब तक कितना ही पानी बह चुका है । शरीर अब जवाब दे रहा है, ब्‍लडप्रेशर, डायबटीज जैसी बीमारियां अब हर सांस के साथ चलती हैं । पहाड़ की उतार चढ़ाव में घुटने में भी दर्द उभर आता है । मैं तो पिफर भी जड़ों के लिए इन कष्‍टों को झेल जाऊं । पर मिसेज का क्‍या करूं । वो तो सड़ी गर्मी में भी दिल्‍ली का ‘फ़लैट’ छोड़ने को तैयार नहीं है । उसके पास कई तर्क हैं । बीमारी, मौसम, सबसे बड़ा घर खाली छोड़ने पर चोरी का डर । बंद घरों में चोरी की खबर वो कुछ ज्‍यादा ही जोर से पढ़ती है । कई बार मैं भी खुद को उसके तर्क से सहमत पाता हूं । उसका कहना है कि अचानक तुम्‍हारी तबीयत खराब हो जाए तो वहां अच्‍छे डॉक्‍टर ही कहां हैं, धार खाल के सरकारी डॉक्‍टर के भरोसे वहां रहने का रिस्‍क कैसे लें ।

कई बार सोचता हूं कि गांव में दो कमरों का एक मकान बना लूं । कोई न भी आए तो मैं खुद ही जाकर महीने दो महीने वहां बिता आउँ। भतीजे की ब्‍वारी दो रोटियां तो दे ही देगी । लेकिन ख्‍याल आता है कि मैं तो साल दो साल का मेहमान हूं, मेरे पीछे उस मकान की क्‍या उपयोगिता रहेगी, बच्‍चे बाद में मुझे ही बेवजह खर्च करने के लिए कोसेंगे । इस कशमकश में दिन तेजी से बीत रहे हैं । और मेरी बैचेनी इसी तेजी के साथ बढ़ रही है । मैं अब भी दुविधा में झूल रहा हूं । यहां ‘अजनबी’ हूं तो वहां ‘अनपिफट’ । मुझे पहाड मैं दिल्ली की सुविधा चाहिए, ये संभव नहीं है। अब बस कभी कभी डीवीडी पर गढ़वाली गाने बजा कर खुद को तृप्‍त कर लेता हूं । घर में गढ़वाली बोली पर नियंत्रण रखने वाला मैं अकेला शख्‍स हूं । इस तरह अपने ही घर में मैं भाषायी अल्‍पसंख्‍यक होने का भय महसूस करता हूं । आज 60 की उम्र पार करने के बाद मेरा ये संकल्‍प बस सपना बन कर रह गया है । ना दौड़ ना दौड़ गीत मैं अब भी सुनता हूं, पर ये गीत मुझे अब धिक्‍कारता है ।
ये मेरी आपबीती जैसी है, अगर आपकी भी कुछ ऐसी ही खैरी है तो जरूर नीचे अपनी प्रतिक्रिया दें ।
संजीव कंडवाल

27 मार्च, 2010

दिव्‍यविजन 2012


तो भारी हंगामे और अविश्‍वास प्रस्‍ताव के नाटकीय (प्रायोजित) घटनाक्रम के बाद उत्‍तराखंड विधानसभा का बजट सत्र समाप्‍त हो गया है। सत्र की समाप्ति के बाद नेता विपक्ष हरक सिंह रावत (हरकू दा) ने घोषणा की है कि 2012 के चुनाव में बीजेपी को 15 सीट भी नहीं मिलेंगी, अगर मिलेंगी तो वह (हरकू दा) राजनीति से सन्‍यास लेकर हिमालय में तपस्‍या करने चले जाएंगे। इसी के साथ सत्‍ता के गलियारों में 2012 की तैयारी शुरू होने लगी है, कांग्रेसियों का आत्‍मविश्‍वास बढा हुआ है, हरकू दा की बॉडी लैंग्‍वेज इसका प्रमाण है, उन्‍हें उम्‍मीद है कि मार्च 2012 में उनकी भी उनकी किस्‍मत की घंटी बजेगी, निक्‍कू भाई की तरह, एक दिन उनके भी सपनों को पंख लगेंगे। ।।।।।।।।।।।

और इस तरह मार्च 2012 भी आ गया, ईवीएम के नतीजे कांग्रेस के पक्ष में गए। दिक्‍कत यह है कि पार्टी का बहुमत होने के बावजूद कांग्रेस में किसी भी नेता के पास आंतरिक बहुमत नहीं है, यानि असल चुनाव तो अब शुरू हो रहा है। इस तरह प्रदेश में एक गंभीर राजनैतिक संकट खडा हो गया, िफर इसे टालने के लिए एक सर्वदलीय सरकार का गठन होता है, जिसमें सभी दलों के दिग्‍गजों को एडजस्‍ट किया जाता है, पिफर जो तस्‍वीर उबरी वो कुछ यूं थी ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;


भगत सिंह होश्‍यारी
सीएम (बिना अधिकार)
आप राख से लाख और लाख से खाक होने की अदभुद मिसाल हैं । जिंदगी में कोई बडी ख्‍वाईश नहीं थी, कभी कफकोट की रामलीला में भी मंत्री ना बनने वाले होश्‍यारी दा को वर्ष 1999 में एमएलसी बनने का गौरव हासिल हुआ। इसबीच समयचक्र तेजी से घूमता है, और आप नवगठित उत्‍तराखंड के पहले सीएम की रेस में शामिल हो गए, अंतिम शण में आप स्‍वामी से पिछडे पि‍फर पहली सरकार में पावर जैसा पावरफुल महकमा हाथ लग, इधर प्रदेश में पहली विधानसभा के चुनाव की रणभेरी गूंज रही थी और उधर आपकी किस्‍मत का पिफर सूरज चमक उठा। आप नवबंर 2001 में राज्‍य के दूसरे सीएम बन गए, पूरे आत्‍मविश्‍वास के साथ चुनाव में गए पर चुनाव बाद पता चला कि ये आत्‍मविश्‍वास अति आत्‍मविश्‍वास था। आपके लीडरशिप में पार्टी को करारी हार मिली ओर आपके दुर्दिन शुरू हो गए, पिफर भी आपके हाथ नेता विपक्ष का पद आया। लेकिन नौछमी की माया से आप भी न बच पाए, नतीजा आप पर मित्र विपक्षी होने का आरोप लगा, नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी भी ढाई साल में जाती रही । दूसरे चुनाव में पार्टी जीती तो भी आप को सत्‍ता सुख नसीब न हुआ। जनरल को जैसे तैसे कुर्सी से हटा तो दिया पर आपके हाथ पिफर भी कुछ नहीं लगा यानि आप किस्‍मत के मारे है, अभागे हैं, बेचारे हैं, लाचार हैं मजबूर है, इसलिए

हे मान्‍यवर उत्‍तराखंड राज्‍य में सीएम की कुर्सी के आप सर्वाधिक सूटेबुल कंडिडेट हैं कृपया आप बिना अधिकार के सीएम बनने का न्‍यौता स्‍वीकार करें


मंत्रीपरिषद

नारायण दत्‍त तिवारी (प्रचलित नाम नौछमी)
विभाग ; म‍हिला मामले


हे 87 वर्षीय चिर चुवा, हे चमचों के चहेते, हे संजय शिष्‍य, हे आंध्र फेम, आप सचमुच दुर्लभ हैं। आप जीवन में 87 बसंत देख चुके हैं फिर भी आप नित नई लकीर खींचते जा रहे हैं। आप साबित कर चुके हैं कि आपको ‘खारिज’ करने वाले कितने बेवकूफ हैं यह कि आप अब भी कितने ‘एक्टिव’ हैं । यूं तो आपने दो राज्‍यों में सीएम की कुर्सी का वरण किया, केंद्र में कई सरकारों में मंत्री रहे यही, नहीं राजभवन जैसे ग्‍लैमरहीन जॉब को भी आपने अपने प्रताप से एकदम ‘हॉट’ बना दिया ि‍फर भी आपकी स्‍वाभाविक अभिरुचि को हमेशा दरकिनार किया गया, ऐसा लगता है कि आपको कभी भी अपना मनपसंद विभाग नहीं दिया गया इसलिए;;;;;;;;;;;
आपको निर्विवाद रूप से महिला मामले का मंत्री बनाने का प्रस्‍ताव है। कृपया बेझिझक (वैसे झिझकना आपका मिजाज नहीं है) इस पद को स्‍वीकार करें । सुना है कि कोयले की खदान देने का आपका वादा अभी पूरा नहीं हुआ है इसलिए हे सदाबहार शख्‍स इस भेंट को स्‍वीकार करें और लगे रहें।


निक्‍कू दाई
पावरगेम
यूं तो आप इस धरती पर ‘बॉर्न टू रूल’ की शर्त पर ही अवतरित हुए हैं, पर क्‍या करें इन चुनाव में आपके बालसखा हरकू ने ही आपकी उम्‍मीदों पर पानी फेर दिया। पिफर राठ छोड कर श्रीनगर आने का फैसला भी आपका जल्‍दबाजी वाला साबित हुआ। हे निक्‍कू भाई आप जैसे दिग्‍गज को क्‍या विभाग दें इस पर हम फैसला नहीं ले पा रहे हैं । आप पावर जैसी तुच्‍छ भेंट स्‍वीकार करें, आप 46 पावर प्रोजेक्‍ट का तो हिसाब कर ही चुके हैं, इसलिए आपके मिशन को पूरा करने के लिए आपको एक बार पिफर ये विभाग दिया जा रहा है । ताकि आप उत्‍तराखंड को देश का भाल बना सकें इसलिए ;;;;;;;;;;

हे श्री श्री श्री 1008 आपको पावर विभाग का मंत्री बनाया जाना प्रस्‍तावित है, इस ऊर्जा प्रदेश को सचमुच आप जैसा ऊर्जावान मंत्री चाहिए जो बिना रुके घंटो, दिनों हवाई याता करता रहे, जो अपने आवास में डाइंग रूम से शौचालय तक भी जाने के लिए हवाई सेवा का इस्‍तेमाल करें, हे कवि हृदय आप ही हमारे ऊर्जा मंत्री हैं ।

जरनल (रिटायर) भू च खंडूडी ऊर्फ सीएम (हटाए गए)
आवास विकास एंव भूमि विकास

सर, साहब, हुजूर हमें आपके लिए कोई पद ऑफर करते हुए बेहद डर लग रहा है । आपकी मूंछों का रौब ही ऐसा है, पिफफर भी प्रदेश सरकार की स्थिरता के लिए हमारे लिए तमाम हैवीवेट नेताओं को एडजस्‍ट करना जरूरी है । महाशय आपके कद के अनुसार यूं पद नहीं है पर संयोग से आपके लिए आवास विकास (हाउसिंग और कमर्शियल प्रोजेक्‍ट ) तथा भूमि विकास (देहरादून की ग्रीन बेल्‍ट में प्‍लाटिंग) महकमा ठीक रहेगा । सुना है आपको हटाने में भू माि‍फया ने अपना अमूल्‍य सहयोग दिया, इनके मु‍खिया डोईवाला क्षेत के कोई नेताजी बताए जाते हैं, इसलिए इस महकमें से आप अपनी निजी खुन्‍नस निकाल सकते हैं वैसे भी केंद्र में सडक परिवहन मंत्री रहने के दौरान आपकी कार्यशैली से प्रभावित लेखक खुशवंत सिंह आपको बिल्‍डर मिनिस्‍टर का दर्जा दे चुके हैं हैं, इसलिए ;;;;;;;;;
आप आवास विकास एंव भूमि विकास का केबिनेट मिनिस्‍टर बनना स्‍वीकार करें । वैसे भी आप सीएम रहने के बावजूद अपनी विधानसभा सीट धुमाकोट का वजूद बचाने में नाकाम साबित हुए हैं, यानि आपको भी राजनैतिक जमीन की तलाश है, इसलिए आप के लिए जमीन से जुडा विभाग मुफीद रहेगा ।


हरकू दा
सीमा विस्‍तार
यूं हरकू दा सीएम बनने की दौड में थे, पर चूंकि उनका एक ड्रीम प्रोजेक्‍ट अभी हवा में झूल रहा है इसलिए आपके लिए राज्‍य सीमा विस्‍ताव मंतालय का गठन किया जाता है । महाशय आप गजब के हैं, अतिक्रमण करने में आपका जवाब नहीं, संघ में पले बढे ओर बगावत भी कर डाली, पिफर 1997 के चुनाव में आपने अपनी पार्टी (शायद आप भी इसका नाम भूल गए होंगे) उत्‍तरांखड विकास पार्टी का गठन कर ब‍‍र्फिया लाल जुंवाठा को उत्‍तरकाशी से टिकट भी दे दिया, पर ऐन नामांकन के दिन खुद अध्‍यक्ष जी ने जनता दल के टिकट पर पौडी से नाम दाखिल कर ब‍‍र्फिया लाल को चुनाव के शीत में ठिठुरने छोड दिया।
राज्‍य गठन से पहले आप ‘घर वापसी’ की चर्चा के बीच कांग्रेस में शामिल हुए, अपनी फर्स्‍ट च्‍वाइस पौडी से टिकट न मिला तो आप बगल की सीट लैंसडाउन पर खिसक लिए। चुनाव में जीते मंत्री बने, इसी बीच जैनी ने आपको डस लिया, आप की कुर्सी जाती रही। लेकिन आपने बतौर राजस्‍व मंत्री दो साल के बेहद कम समय में अमिट छाप छोडी। पटवारी भर्ती में आपका नाम प्रमुखता से लिया गया। आप ‘जो जीता वो ही सिंकदर’ की तर्ज पर जीते हैं । दुबारा चुनाव हुए, आप अपने मित्र धस्‍माना की मदद से जीते और नेता प्रतिपक्ष तक बन गए । महाशय नेता प्रतिपक्ष रहते हुए आपने पलायन, बेरोजगारी, भ्रष्‍टाचार जैसे विषयों पर अपने मित्र निक्‍कू दाई को बचाने की भरसक को‍शिश की, इसके तहत आपने राज्‍य का सीमा विस्‍तार जैसा अति आवश्‍यक विषय छेडकर सबको चौंका दिया। आपकी पूरी कोशिश बिजनौर और सहारनपुर को उत्‍तरांखड में मिलाकर पहाडी राज्‍य को पूरी तरह से मैदान बनाने की है, इसलिए ;;;;;;;

हे राजनीति के धुरंधर आपके लिए केंद्र सरकार से इजाजत मांग कर सीमा विस्‍ताव मंत्रालय का गठन किया गया है । हे महाशय आप आएं और राज्‍य सीमा विस्‍तार जैसे एक मात्र महत्‍वपूर्ण मिशन में जुट जाएं। इस काम के लिए सहारनपुर के सैनी, बिजनौर के चौहान आपके सदा आभारी रहेंगे, लैंसडौन की चिंता आप न करें, आप सहारनपुर या बिजनौर से चुनाव जीत सकते हैं :

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सूर्यकांत धस्‍माना
राज्‍य आंदोलनकारी कल्‍याण मंत्री
पूरे दस साल हो गए इस राज्‍य को बने हुए । फिर भी आंदोलनकारियों को शिकायत है कि उनके सपनों का रज्‍य नहीं बन पाया, आंदोलनकारियों का सम्‍मान नहीं हो रहा है । इधर राज्‍य आंदोलन में अपना उल्‍लेखनीय योगदान देने वाले युवा सूर्यकांत धस्‍माना भी बहुत दिनों से हासिए पर हैं । इस चुनाव 1212 में धस्‍माना हरकू दा के बैक सपोर्ट, यशपाल आर्य के मॉरल सपोर्ट और एनडी तिवारी के रणनीतिक समर्थन से विधानसभा में पहुंचने में सफल रहे हैं । इस तरह आंदोलनकारियों के सपनों और सूर्यकांत धस्‍माना की भूमिका और टैलेंट का ये अदभुद संयोग है इसलिए ;;;;;;;;

राज्‍य आंदोलन के दौरान देहरादून के करनपुर मोहल्‍ले में उल्‍लेखनीय भूमिका निभाने वाले सूर्यकांत धस्‍माना को राज्‍य आंदोलनकारी कल्‍याण मंत्री बनाने का प्रस्‍ताव किया जाता है। आपसे उम्‍मीद की जाती है कि आप मुलायम सिंह के सपनों और नौछमी के विजन का राज्‍य बना कर आंदोलनकारियों के सपनों को सच करेंगे



कुंवर प्रणव सिंह चैम्पियन
शरीर शौष्‍ठव मंत्री
उत्‍तराखंड राज्‍य में लक्‍सर रियासत भी हैं । यहां के कुंवर हैं प्रणव सिंह, जो शरीर शौष्‍ठव प्रतियोगिता के चैम्पियन रह चुके हैं, यही उनकी ताकत है, शान है, पहचान है। कुंवर साहब इस बार लगातार तीसरी बार विधायक बने हैं इसलिए उन्‍हें भी मंत्री पद चाहिए, वरना उनके समर्थन विधानसभा के अंदर ही रागणी गाना शुरू कर देंगे। कुंवर की भीमकाय बॉडी, घनी और रौबदार मूछें और औछी हरकतों के कारण उनके लिए शरीर शौष्‍ठव मंत्रालय का गठन किया जाता है, इसलिए

हे दंबग, उदंड और हुडदंग विधायक आप शरीर शौष्‍ठव मंत्रालय में आकर पहाड के सीदे सादे लोगों को भी बाहुबल के फायदों बताएं, यहां वैसे भी यूपी कल्‍चर कम होता जा रहा है कृपया आप आएं और यूपी की यादों को ताजा रखें।

( नोट ; चुनाव नतीजे आने के बाद से घंटों चिंतन करने के बावजूद हमारा थिंक टैंक फिलहाल इन कुछ लोगों को ही केबिनेट मे लेने पर सहमत हो पाया है । वैसे हम खुशकिस्‍मत हैं कि हमारे पास नेताओं की व्‍यापक रेंज है, अभी मंत्री परिषद में पांच और लोग खपाए जा सकते हैं । इसके लिए तमाम लोग दावेदार हैं, यूकेडी के जिला स्‍तरीय पदाधिकारी से लेकर कांग्रेस के अनगिनत फ्रंटल संगठनों के असख्‍ंय पदाधिकारियों तक । संघ के प्रचारकों से लेकर बीजेपी से जुडे तमाम ठेकेदारों के नाम पर आगे विचार किया जाएगा। । फिर भी जो रह गए उन्‍हें तमाम निगमों आयोगों में बैठाया जाएगा। जो फिर भी रह जाएं वो कहीं मुंह खोले बगैर हमारे पास पहुंच जाएं, हम तिवारी फार्मूला अपनाते हुए सबका मुंह भरने में यकीन रखते हैं। हमारे सामने एक ही चैलेंज है किसी भी कीमत पर कुर्सी बचाए रखना )

20 मार्च, 2010

pealo umaal


जुलाई 1974 में जब मैंने पहला गढ़वाली गीत लिखा था, सोचा भी नहीं था कि यह गीत यात्रा, जीवन यात्रा के साथ- साथ दूर तक paunchega , वह पहला गीत तो महज घर से दूर घर-परिवार की ‘खुद’ (याद) का ही परिणाम था, फिर श्रोताओं की स्‍वीकृति व प्रोत्‍साहन‍ मिलने पर अपने लोक-समाज को पढ़ने-समझने के अनवरत प्रयास होते रहे और गीत लेखन जारी रहा।
मनोरंजक लोकगीतों के साथ-साथ पर्यावरण, पलायन व शराबखोरी की समस्‍या, पहाड़ी महिलाओं की सामाजिक स्थिति, पहाड़ी जन-जीवन में बढ़ती तकलीफें, घटते सांस्‍कतिक मूल्‍य व जल-जमीन-जंगल, राजनीति के गिरते स्‍तर पर उठते सवाल आदि अनेक समसामयिक विषयों पर यूं तो छिटपुट रचनाओं का दौर चलता रहा, किन्‍तु 1994 के उत्‍तराखंड आंदोलन ने लोकगीतों की पारंपरिक धारा आंदोलन के गीतों की ओर मोड़ दी। यह परिवर्तन अनायास नहीं आया। मुझे याद है उत्‍तरकाशी में शेखर दा के प्रेरक शब्‍द कि ‘आंदोलन हमारे दरवाजे पर दस्‍तक दे रहा है, लिखने का यही सही समय है। इधर कुमांउ से ‘गिर्दा’ के जनगीतों की ऊर्जा का संचार और इधर उत्‍तरकाशी में कलादर्पण की जनगीतों के साथ प्रभातफेरियों का सिलसिला, और फिर 2 अक्‍टूबर 1994 को मुजफ्फरनगर में उत्‍तराखंड आंदोलनकारियों पर दमनचक्र की प्रतिक्रिया में सड़कों पर दुगने वेग से उभरता स्‍वयंफूर्त जनसैलाब। इसी प्रेरणा और वातावरण में सृजित हुए ये गीत, जिन्‍हें अक्‍टूबर 1994 में ‘उठा जागा उत्‍तराखंड़यूं’ ऑडियो कैसेट में गाकर उस ऐतिहासिक आंदोलन में छोटी सी भूमिका निभाने का मैने भी प्रयास किया। आज उन्‍हीं चंद गीतों व पूर्व रचित अन्‍य जनगीतों को उत्‍तराखंड की गौरवशाली संस्‍था ‘पहाड़’ ने अपने प्रकाशन में शामिल कर मुझे जो मान दिया है, उसके लिए मैं पहाड प‍रिवार का आभारी हूं।
आज की नई पीढ़ी, जो अपनी आंचलिक बोली गढ़वाली- कुमांऊनी से दूर होती जा रही है, के लिए इन गीतों का कितना महत्‍व है, यह तो मैं नहीं कह सकता किन्‍तु इतना अवश्‍य कहूंगा कि नई पीढ़ी को शहीदों की शहादत की दास्‍तां एवं उसके ऐतिहासिक आंदोलन को जानने समझने में ये गीत भी कही न कहीं मददगार साबित होंगे।

नरेन्‍द्र सिंह नेगी
(saabhaar - muth boti ki rakh)

भेजी का बाराम


12 अगस्त 1947 को पौडी नगर स्थित पौडी गांव में सुमद्रादेवी और उमराव सिंह नेगी के घर जन्मे नरेंद्र अपने गीतों के लिए सर्वत्र जाने जाते हैं

अब तक उनके करीब 3 दर्जन कैसेट (ओडियो वीडियो), तीन गीत संग्रह खुचकड़ी (भाग 1- २ क्रमशः 1991 - 2009) , गाणयू की गंगा स्याणू का समोदर ( 1991) , मुठ बोटी की रख ( 2002 ) आ चुके हेँ । अब तक आधा दर्जन फिल्मों में नेगी जी संगीत दे चुके हैं । पारम्परिक लोक गाथाओं तथा मंगल गीतों के ऑडियो संग्रह प्रस्तुत करके भी उन्होंने अपना योगदान दिया है ।

सैकड़ों आयोजनों में लाखों लागों के बीच वे पिछले 30 सालों से लगातार गाते आ रहें हैं , उनकी लोकप्रियता किसी शिखर पर ठहरी नहीं है, वो बढती जा रही है ।

सरकारी नौकरी से रिटायरमेंट लेने के बाद आप पूरी तरह संगीत की दुनिया में सक्रिय हैं ।


( साभार - मुठ बोटी की रख )

18 मार्च, 2010

मुठ बोटी क रख


द्वी दिन की हौरी छ खैरी म मुठ बोटीकि रख
तेरि हिकमत आजमाणू बैरी
मुठ बोटी क रख

घणा डालों बीच छिर्की आलु घाम ये मुल्‍क बी
सेकि पालै द्वी धड़ी छि हौरि
मुठ बोटी क रख

सच्‍चू छै तू सच्‍चू तेरू ब्रहम लडै़ सच्‍ची तेरी
झूठा दयबतौंकि किलकारयून ना डैरि
मुठ बो‍टी क रख

हर्चणा छन गौं गुठयार री‍त रिवाज बोलि भाषा
यू बचाण ही पछयाण अब तेरि
मुठ बोटी क रख

सन इक्‍यावन बिटि ठगौणा छिन ये त्‍वे सुपिन्‍या दिखैकी
ऐंसू भी आला चुनौमा फेरि
मुठ बोटी की रख

गर्जणा बादल चमकणी चाल बर्खा हवैकि राली
हवे‍कि राली डांडि़ कांठी हैरि
मुठ बोटी क रख



सार ये है

दो दिन की और है मुश्किल, हिम्‍मत बांध कर रख
तेरी हिम्‍मत आजमा रहा है दुश्‍मन
हिम्‍मत बांध कर रख

घने जंगल के बीच इस देश में भी चमकेगा सूरज
पाले की अकड़ तो बस दो मिनट की है
हिम्‍मत बांध कर रख




सच्‍चा है तू सच्‍ची है तेरी आत्‍मा और तेरी लड़ाई भी सच्‍ची है
झूठे देवताओं की गर्जना से तू ना डरना
हिम्‍मत बांध कर रखना

खो रहे हैं गांव खलिहान, रीति रिवाज बोली भाषा
इनको बचाने में ही अब तेरी पहचान है
हिम्‍मत बांध कर रखना

तूझे सन इक्‍यावन से सपने दिखाकर ये लूट रहे हैं
इस बार पिफर चुनाव में ये आने वाले हैं
हिम्‍मत बांध कर रखना

बादल गरज रहे हैं, तूफान आने को है बारिश होकर रहेगी
ये पहाड़ भी हरे होकर रहेंगे
हिम्‍मत बांध कर रखना